नल वंश के राजाओं के नाम
1) वराह राज : इनके राज्य में सुख समृद्धि थी तथा वराह राज एक स्वतंत्र शासक के रूप में बस्तर में शासन कर रहा था वराह राज के समृद्धि के कारण वाकाटक नरेश ने इस छेत्र के ओर आक्रमण कर दिया तथा मिरशि के अनुसार इस इलाके के कुछ भूभाग पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया । कोंडागांव जिले के ग्राम एडेगा से वरहराज के कुल 29 सिक्के प्राप्त हुए है।
2) भवदत्त वर्मन : भवदत्त वर्मन ने गद्दी प्राप्त करने के पश्चात वाका टक साम्राज्य पर आक्रमण किया , तथा तत्कालीन सम्राट नरेन्द्र सेन को परास्त किया। भवदत्त ने वाकाटकों की राजधानी नंदि वर्धन नांदेड पर अधिकार कर स्थापित कर लिया । भवदत्त वर्मन विजयी राजा था । उसके सम्राज्य के अंतर्गत बरार से लेकर कोरापुट तक का भाग आता था ।इसका आधार अमरावती जिले के मोराशि अंचल से प्राप्त भवदत्त का ताम्रपत्र है। ताम्रपत्र से ज्ञात होता है की उकी पत्नी का नाम अचाली भट्टारिक था । वाकाटकों के विजय अभियान में भवदत्त के साथ उनका ज्येष्ठ पुत्र अर्थपति था
भवदत्त वर्मन , भट्टारक की उपाधि धारण करने वाला इस अंचल का पहला शासक था । महा राज भट्टारक अर्थपति भवदत्त वर्मन यह नाम उसकी उपाधि के साथ जुडी हुई मिलती है।
3) महाराजा अर्थपति
पिता के उत्तराधिकार में उसे विस्तृत सम्राज्य प्राप्त हुआ था । साम्राज्य बरार से लेकर उड़ीसा तक फैला था । दक्षिण भारत के पल्लव राजाओं की तरह भट्टा रक की उपाधि धारण की थी । अर्थपति के पिता भवदत्त वर्मन ने दक्षिण भारत के शक्तिशाली वाकाटकों को परास्त किया था । वाका टक इस अपमान को भूले नहीं थे और मौके की तलाश में थे । भवदत्त के मृत्यु के पश्चात तैयारी तेज हो गयी थी। नरेंद्र सेन के पौत्र पृथ्वी सेन दुइतिय ने मौका देख नलों पर आक्रमण कर दिया , अर्थपति बुरी तरह से परास्त हुआ । तथा बदले की आग में राजधानी पुष्कारी को नष्ट ब्रष्ट कर दिया ।
4) स्कंदवर्मा : अर्थपति की मृत्यु के बाद उसका भाई स्कंदवर्मा पुष्कारी की राज गद्दी पर बैठा और नलों की शक्ति को पुनः बढ़ाया। पुष्कारी को फिर से बसाया और गौरव दिलाया ।
इस समय वाकाटकों के गद्दी पर पृथवी सेन के मृत्यु के पश्चात देव सेन बैठा था । देव सेन की कमजोरी का फायदा उठा कर स्कंदवर्मा ने विदर्भ के बहुत सारे भू भाग पर कब्ज़ा कर लिया और स्कन्द वर्मा वाकाटकों के लिए गम्भीर खतरा बन गया । पुष्कारी के पोङागढ़ बनने के सम्बन्ध में सुन्दरलाल त्रिपाठी ने लिखा है वाका टक नरेश के नष्ठ विनष्ठ भस्मीभूत कर देने के पश्चात पुष्कारी अथवा पुष्करगढ़ पोडगढ़ में परिवर्तित हो गया । चक्रकूट की आदिम जातियां विदग्ध शब्द के स्थान पर पोङा शब्द का व्यवहार करती है।स्कंधवर्मा ने नलों से खोये हुए राज्य को वाकाटको से वापिस पाकर बहुत प्रशिद्धि पाई । स्कंदवर्मा ने पोडगड़ में विष्णु का मंदिर बनवाया । पोङा गड शिलालेख नलो का पहला शीला लेख है विजयी था । विजयी है और विजयी रहेगा , इन पंक्तियो के साथ पोडगड़ शिलालेख का प्रारम्भ होता है इस शिलालेख से पता चलता है की वह भवदत्त का पुत्र है शैव सम्प्रदाय से पुनः वैष्णव सम्प्रदाय का होना भी इसी लेख से ज्ञात होता है।
पश्चातवर्ती नल शासक
स्कन्दवर्मा के पश्चात उसका पुत्र नंदन राज हुआ । उसकी शिक्षा दीक्षा नालंदा में हुई , फिर उसका पोता पृथ्वी राज राजा हुआ ।
पृथ्वीराज का शासन काल अनुमानत 600 ई से 630 ई तक था पृथ्वीराज ^ का पुत्र ^विरूपाक्ष और उसका पुत्र^ विलासतुंग हुआ । जिसने राजिम का विष्णु मंदिर बनवाया ।
राजिम अभी लेख में विरूपाक्ष और पृथवी राज के बारे में जानकारी मिलती है ।
पुलकेशिन 2 प्रशिद्धि चलुक्या नरेश था उसने उत्तर भारत के हर्ष वर्धन को परास्त किया था । 609 ई से 642 तक उसका शाशन था । ऐसा प्रतीत होता है की नल उसकी अधीनता मानते थे।
1) वराह राज : इनके राज्य में सुख समृद्धि थी तथा वराह राज एक स्वतंत्र शासक के रूप में बस्तर में शासन कर रहा था वराह राज के समृद्धि के कारण वाकाटक नरेश ने इस छेत्र के ओर आक्रमण कर दिया तथा मिरशि के अनुसार इस इलाके के कुछ भूभाग पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया । कोंडागांव जिले के ग्राम एडेगा से वरहराज के कुल 29 सिक्के प्राप्त हुए है।
2) भवदत्त वर्मन : भवदत्त वर्मन ने गद्दी प्राप्त करने के पश्चात वाका टक साम्राज्य पर आक्रमण किया , तथा तत्कालीन सम्राट नरेन्द्र सेन को परास्त किया। भवदत्त ने वाकाटकों की राजधानी नंदि वर्धन नांदेड पर अधिकार कर स्थापित कर लिया । भवदत्त वर्मन विजयी राजा था । उसके सम्राज्य के अंतर्गत बरार से लेकर कोरापुट तक का भाग आता था ।इसका आधार अमरावती जिले के मोराशि अंचल से प्राप्त भवदत्त का ताम्रपत्र है। ताम्रपत्र से ज्ञात होता है की उकी पत्नी का नाम अचाली भट्टारिक था । वाकाटकों के विजय अभियान में भवदत्त के साथ उनका ज्येष्ठ पुत्र अर्थपति था
भवदत्त वर्मन , भट्टारक की उपाधि धारण करने वाला इस अंचल का पहला शासक था । महा राज भट्टारक अर्थपति भवदत्त वर्मन यह नाम उसकी उपाधि के साथ जुडी हुई मिलती है।
3) महाराजा अर्थपति
पिता के उत्तराधिकार में उसे विस्तृत सम्राज्य प्राप्त हुआ था । साम्राज्य बरार से लेकर उड़ीसा तक फैला था । दक्षिण भारत के पल्लव राजाओं की तरह भट्टा रक की उपाधि धारण की थी । अर्थपति के पिता भवदत्त वर्मन ने दक्षिण भारत के शक्तिशाली वाकाटकों को परास्त किया था । वाका टक इस अपमान को भूले नहीं थे और मौके की तलाश में थे । भवदत्त के मृत्यु के पश्चात तैयारी तेज हो गयी थी। नरेंद्र सेन के पौत्र पृथ्वी सेन दुइतिय ने मौका देख नलों पर आक्रमण कर दिया , अर्थपति बुरी तरह से परास्त हुआ । तथा बदले की आग में राजधानी पुष्कारी को नष्ट ब्रष्ट कर दिया ।
4) स्कंदवर्मा : अर्थपति की मृत्यु के बाद उसका भाई स्कंदवर्मा पुष्कारी की राज गद्दी पर बैठा और नलों की शक्ति को पुनः बढ़ाया। पुष्कारी को फिर से बसाया और गौरव दिलाया ।
इस समय वाकाटकों के गद्दी पर पृथवी सेन के मृत्यु के पश्चात देव सेन बैठा था । देव सेन की कमजोरी का फायदा उठा कर स्कंदवर्मा ने विदर्भ के बहुत सारे भू भाग पर कब्ज़ा कर लिया और स्कन्द वर्मा वाकाटकों के लिए गम्भीर खतरा बन गया । पुष्कारी के पोङागढ़ बनने के सम्बन्ध में सुन्दरलाल त्रिपाठी ने लिखा है वाका टक नरेश के नष्ठ विनष्ठ भस्मीभूत कर देने के पश्चात पुष्कारी अथवा पुष्करगढ़ पोडगढ़ में परिवर्तित हो गया । चक्रकूट की आदिम जातियां विदग्ध शब्द के स्थान पर पोङा शब्द का व्यवहार करती है।स्कंधवर्मा ने नलों से खोये हुए राज्य को वाकाटको से वापिस पाकर बहुत प्रशिद्धि पाई । स्कंदवर्मा ने पोडगड़ में विष्णु का मंदिर बनवाया । पोङा गड शिलालेख नलो का पहला शीला लेख है विजयी था । विजयी है और विजयी रहेगा , इन पंक्तियो के साथ पोडगड़ शिलालेख का प्रारम्भ होता है इस शिलालेख से पता चलता है की वह भवदत्त का पुत्र है शैव सम्प्रदाय से पुनः वैष्णव सम्प्रदाय का होना भी इसी लेख से ज्ञात होता है।
पश्चातवर्ती नल शासक
स्कन्दवर्मा के पश्चात उसका पुत्र नंदन राज हुआ । उसकी शिक्षा दीक्षा नालंदा में हुई , फिर उसका पोता पृथ्वी राज राजा हुआ ।
पृथ्वीराज का शासन काल अनुमानत 600 ई से 630 ई तक था पृथ्वीराज ^ का पुत्र ^विरूपाक्ष और उसका पुत्र^ विलासतुंग हुआ । जिसने राजिम का विष्णु मंदिर बनवाया ।
राजिम अभी लेख में विरूपाक्ष और पृथवी राज के बारे में जानकारी मिलती है ।
पुलकेशिन 2 प्रशिद्धि चलुक्या नरेश था उसने उत्तर भारत के हर्ष वर्धन को परास्त किया था । 609 ई से 642 तक उसका शाशन था । ऐसा प्रतीत होता है की नल उसकी अधीनता मानते थे।
Prithvisen to narendrasen ka putra tha shyd
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